देहरादून। 'धरा पर थम गई आंधी, गगन में कांपती बिजली, घटाएं आ गई अमराइयों तक, तुम नहीं आए और नदी के हाथ निर्झर की, मिली पाती समंदर को, सतह भी आ गई गहराइयों तक, तुम नहीं आए।' प्रसिद्ध कवि बलवीर सिंह 'रंग' ने ये पंक्तियां भले ही किसी भी संदर्भ में कही हों, लेकिन आपदा के बाद के दौर पर ये सटीक बैठती हैं।
आपदा के बाद तबाह हो चुके पहाड़ की एकमात्र उम्मीद सरकार पर ही तो थी, लेकिन दस माह बाद भी वह आपदा प्रभावितों के करीब नहीं है। यह तस्वीर तब है, जब दो मई्र चारधाम यात्रा शुरू करने का दिन-पट्टा निकल चुका है। बताइए, क्या हुआ उन सपनों का, जो आपदा के बाद नाउम्मीदी को उम्मीद में बदलने के लिए दिखाए गए थे।
राजनीतिक दलों के लिए भले चारधाम यात्रा चुनावी नफा-नुकसान को तौलने का जरिया हो, लेकिन पहाड़ के लिए यह जीवन से जुड़ा सवाल है। यात्रा सुचारु एवं सुव्यवस्थित रही तो जीवन में खुशहाली है, अन्यथा उदासी के सिवा कुछ भी नहीं। फिलहाल तो यात्रा पड़ावों की ऐसी ही तस्वीर नजर आती है। इससे बड़ी अफसोसजनक बात क्या होगी कि जिन परंपराओं की हम दुहाई देते नहीं अघाते, वह गौरीकुंड में मां गौरी के आंगन तक पहुंचते-पहुंचते भरभराकर ढह गईं। परंपरा के अनुसार गौरी माई मंदिर के कपाट बैसाखी के दिन खोले जाते हैं, लेकिन मंदिर के मलबे में दबे होने के ऐसा संभव नहीं हो पाया। जबकि, बाबा केदार के दर्शनों से पहले मां गौरी के दर्शन जरूरी माने गए हैं।
अब जरा मुख्यमंत्री हरीश रावत के गत सात अप्रैल को दिए गए बयान पर गौर कीजिए। उन्होंने कहा, 'आपदा प्रभावित क्षेत्र को 16 जून से पहले की स्थिति में लाने का दावा उन्होंने कभी नहीं किया। लेकिन, राज्य के इस दुर्भाग्य को सरकार अगले दो साल में बेहतर संभावनाओं में बदल देगी।' हैरत देखिए कि यही सरकार दो माह पहले तक सुरक्षित एवं व्यवस्थित यात्रा का खम ठोक रही थी। दूसरी और, जरा स्थिति को निहारिए। यमुनोत्री, गंगोत्री व बदरीनाथ के लिए तो जैसे-तैसे जोखिमभरी राह खोल दी गई है, लेकिन केदारनाथ की राह कब खुलेगी, अब सरकार इसका जवाब देने की स्थिति में नहीं।
जनपद उत्तरकाशी संपत्ति क्षतिग्रस्त पुनर्निर्माण
पुल 30 00
स्कूल 143 00
पूर्ण क्षतिग्रस्त भवन 145
आंशिक क्षतिग्रस्त भवन 341
बेघर परिवार 326
परिवार खतरे की जद में 1300
जनपद रुद्रप्रयाग
पुल 29 00
अस्पताल 02 00
स्कूल 02 00
पूर्ण क्षतिग्रस्त भवन 430
बेघर परिवार 844 00
जनपद चमोली
पुल 45 07
स्कूल 207 00
अस्पताल 05 00
पूर्ण क्षतिग्रस्त भवन 355
बेघर परिवार 536
प्रभावित परिवार 8960
विस्थापित श्रेणी के गांव 69
जनपद टिहरी
पुल 56 07
स्कूल 192 103
के लिए बजट जारी
अस्पताल 08 00
प्रभावित गांव 61
आपदा के दस माह बाद हाल
आपदा के दस माह बाद भी नहीं छट सके निराशा के बादल
स्थिति अनुकूल नहीं और दो मई से आरंभ होनी है चारधाम यात्रा।
आपदा के बाद की मुंह चिढ़ाती तस्वीर-
गंगोत्री-यमुनोत्री यात्रा मार्ग पर पेयजल नहीं
बदरीनाथ हाइवे मलबा आने से लामबगड़ में पूरी तरह क्षतिग्रस्त।
बदरीनाथ हाइवे पर पांडुकेश्वर तक ही हो रही बिजली-पानी की सप्लाई।
आधे गौरीकुंड और रामबाड़ा में दोबारा निर्माण को जमीन नहीं।
रामबाड़ा से ऊपर गरुड़चट्टी और घिनुराणी में दोबारा कारोबार की संभावना नहीं।
रुद्रप्रयाग से सोनप्रयाग तक केदारनाथ हाइवे
कई स्थानों पर जोखिमभरा।
गुप्तकाशी से आगे खाट, बड़ासू व सोनप्रयाग समेत कई स्थानों पर हाइवे बेहद खतरनाक।
रामबाड़ा से केदारनाथ के लिए अब भी बिजली के पोल से बने पुल पर हो रही आवाजाही।
कर्णप्रयाग से आठ किमी दूर देवली बगड़ में हल्की बारिश से भी हो रहा भूस्खलन।
चमोली से करीब पांच किमी पहले मैठाणा में भू-धंसाव का संकट।
हिमपात व वर्षा के चलते लगातार बाधित हो रहा पुनर्निमाण कार्य।
आपदा के बाद तबाह हो चुके पहाड़ की एकमात्र उम्मीद सरकार पर ही तो थी, लेकिन दस माह बाद भी वह आपदा प्रभावितों के करीब नहीं है। यह तस्वीर तब है, जब दो मई्र चारधाम यात्रा शुरू करने का दिन-पट्टा निकल चुका है। बताइए, क्या हुआ उन सपनों का, जो आपदा के बाद नाउम्मीदी को उम्मीद में बदलने के लिए दिखाए गए थे।
राजनीतिक दलों के लिए भले चारधाम यात्रा चुनावी नफा-नुकसान को तौलने का जरिया हो, लेकिन पहाड़ के लिए यह जीवन से जुड़ा सवाल है। यात्रा सुचारु एवं सुव्यवस्थित रही तो जीवन में खुशहाली है, अन्यथा उदासी के सिवा कुछ भी नहीं। फिलहाल तो यात्रा पड़ावों की ऐसी ही तस्वीर नजर आती है। इससे बड़ी अफसोसजनक बात क्या होगी कि जिन परंपराओं की हम दुहाई देते नहीं अघाते, वह गौरीकुंड में मां गौरी के आंगन तक पहुंचते-पहुंचते भरभराकर ढह गईं। परंपरा के अनुसार गौरी माई मंदिर के कपाट बैसाखी के दिन खोले जाते हैं, लेकिन मंदिर के मलबे में दबे होने के ऐसा संभव नहीं हो पाया। जबकि, बाबा केदार के दर्शनों से पहले मां गौरी के दर्शन जरूरी माने गए हैं।
अब जरा मुख्यमंत्री हरीश रावत के गत सात अप्रैल को दिए गए बयान पर गौर कीजिए। उन्होंने कहा, 'आपदा प्रभावित क्षेत्र को 16 जून से पहले की स्थिति में लाने का दावा उन्होंने कभी नहीं किया। लेकिन, राज्य के इस दुर्भाग्य को सरकार अगले दो साल में बेहतर संभावनाओं में बदल देगी।' हैरत देखिए कि यही सरकार दो माह पहले तक सुरक्षित एवं व्यवस्थित यात्रा का खम ठोक रही थी। दूसरी और, जरा स्थिति को निहारिए। यमुनोत्री, गंगोत्री व बदरीनाथ के लिए तो जैसे-तैसे जोखिमभरी राह खोल दी गई है, लेकिन केदारनाथ की राह कब खुलेगी, अब सरकार इसका जवाब देने की स्थिति में नहीं।
जनपद उत्तरकाशी संपत्ति क्षतिग्रस्त पुनर्निर्माण
पुल 30 00
स्कूल 143 00
पूर्ण क्षतिग्रस्त भवन 145
आंशिक क्षतिग्रस्त भवन 341
बेघर परिवार 326
परिवार खतरे की जद में 1300
जनपद रुद्रप्रयाग
पुल 29 00
अस्पताल 02 00
स्कूल 02 00
पूर्ण क्षतिग्रस्त भवन 430
बेघर परिवार 844 00
जनपद चमोली
पुल 45 07
स्कूल 207 00
अस्पताल 05 00
पूर्ण क्षतिग्रस्त भवन 355
बेघर परिवार 536
प्रभावित परिवार 8960
विस्थापित श्रेणी के गांव 69
जनपद टिहरी
पुल 56 07
स्कूल 192 103
के लिए बजट जारी
अस्पताल 08 00
प्रभावित गांव 61
आपदा के दस माह बाद हाल
आपदा के दस माह बाद भी नहीं छट सके निराशा के बादल
स्थिति अनुकूल नहीं और दो मई से आरंभ होनी है चारधाम यात्रा।
आपदा के बाद की मुंह चिढ़ाती तस्वीर-
गंगोत्री-यमुनोत्री यात्रा मार्ग पर पेयजल नहीं
बदरीनाथ हाइवे मलबा आने से लामबगड़ में पूरी तरह क्षतिग्रस्त।
बदरीनाथ हाइवे पर पांडुकेश्वर तक ही हो रही बिजली-पानी की सप्लाई।
आधे गौरीकुंड और रामबाड़ा में दोबारा निर्माण को जमीन नहीं।
रामबाड़ा से ऊपर गरुड़चट्टी और घिनुराणी में दोबारा कारोबार की संभावना नहीं।
रुद्रप्रयाग से सोनप्रयाग तक केदारनाथ हाइवे
कई स्थानों पर जोखिमभरा।
गुप्तकाशी से आगे खाट, बड़ासू व सोनप्रयाग समेत कई स्थानों पर हाइवे बेहद खतरनाक।
रामबाड़ा से केदारनाथ के लिए अब भी बिजली के पोल से बने पुल पर हो रही आवाजाही।
कर्णप्रयाग से आठ किमी दूर देवली बगड़ में हल्की बारिश से भी हो रहा भूस्खलन।
चमोली से करीब पांच किमी पहले मैठाणा में भू-धंसाव का संकट।
हिमपात व वर्षा के चलते लगातार बाधित हो रहा पुनर्निमाण कार्य।
Danik Jgaran
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