Wednesday, June 10, 2015

खतरे में हिमालयी राज्य उत्तराखंड की गैरहिमानी नदियां (कुजगढ़)

कुजगढ़' नदी
जागरण संवाददाता, रानीखेत: हिमालयी राज्य में गैर हिमानी नदियों पर संकट! उच्च इलाकों में बेहतर बर्फबारी व शरदकालीन वर्षा के लंबे स्पैल के बावजूद थमता भूमिगत जल प्रवाह भविष्य की कुछ ऐसी ही भयावह तस्वीर पेश कर रहा। कुमाऊं की छह प्रमुख नदियों के पहले ही संकटग्रस्त घोषित होने के बाद अब 'कुजगढ़' नदी रोखड़ में तब्दील हो गई है। यानी मौसमी नदियों की फेहरिस्त में एक और नाम जुड़ जाएगा। मौजूदा हालातों से चिंतित वैज्ञानिकों ने महानदी गंगा की तर्ज पर 'उत्तराखंड रिवर रिजनरेशन ऑथोरिटी' की सलाह दोहराई है।

उत्तराखंड का तकरीबन 68 फीसद भूभाग यहां की गैर हिमानी नदियां व हजारों धारे एवं गाढ़-गधेरे संचारित करते हैं। मगर ये सभी खुद अस्तित्व को जूझ रहीं। कुमाऊं की 'लाइफ लाइन' कोसी मोहान क्षेत्र में विलुप्ति के कगार पर है। पनार व सरयू काकड़ीघाट, पश्चिमी रामगंगा मरचूला तो गगास भिक्यिासैंण से आगे दम तोड़ रही। ये सभी मौसमी नदियों की सूची में दर्ज हो चुकी हैं। चिंताजनक पहलू यह कि संरक्षण की ठोस नीति न बनने से एक और नदी 'कुजगढ़' रोखड़ में बदल गई है। कोसी की यह सहायक नदी बीते वर्ष जून में छलाछल पर इस साल विलुप्त हो चली है।

खेती बंजर, घराट भी सूने

कुजगढ़ का उद्गम देवलीखेत की पहाड़ी व सौनी बिनसर है। बैना, कोटाड़, स्यूं, गैरड़, ऊंड़ी, कोठिया, टाना, कोरड़, तिपौला, टूनाकोट, चापड़ आदि गांवों की उर्वर धरा को सींचती हुई ये नदी खैरना (नैनीताल) में कोसी में मिलती है। घराट भी इसी के बूते चलते थे। नदी सूखने से बचेखुचे खेत बंजर हो गए हैं।

jagran.com
जागरण संवाददाता, रानीखेत: हिमालयी राज्य में गैर हिमानी नदियों पर संकट! उच्च इलाकों में बेहतर बर्फबारी व शरदकालीन वर्षा के लंबे स्पैल के बावजूद थमता भूमिगत जल प्रवाह भविष्य की कुछ ऐसी ही भयावह तस्वीर पेश कर रहा। कुमाऊं की छह प्रमुख नदियों के पहले ही संकटग्रस्त घोषित होने के बाद अब 'कुजगढ़' नदी रोखड़ में तब्दील हो गई है। यानी मौसमी नदियों की फेहरिस्त में एक और नाम जुड़ जाएगा। मौजूदा हालातों से चिंतित वैज्ञानिकों ने महानदी गंगा की तर्ज पर 'उत्तराखंड रिवर रिजनरेशन ऑथोरिटी' की सलाह दोहराई है।
उत्तराखंड का तकरीबन 68 फीसद भूभाग यहां की गैर हिमानी नदियां व हजारों धारे एवं गाढ़-गधेरे संचारित करते हैं। मगर ये सभी खुद अस्तित्व को जूझ रहीं। कुमाऊं की 'लाइफ लाइन' कोसी मोहान क्षेत्र में विलुप्ति के कगार पर है। पनार व सरयू काकड़ीघाट, पश्चिमी रामगंगा मरचूला तो गगास भिक्यिासैंण से आगे दम तोड़ रही। ये सभी मौसमी नदियों की सूची में दर्ज हो चुकी हैं। चिंताजनक पहलू यह कि संरक्षण की ठोस नीति न बनने से एक और नदी 'कुजगढ़' रोखड़ में बदल गई है। कोसी की यह सहायक नदी बीते वर्ष जून में छलाछल पर इस साल विलुप्त हो चली है।
खेती बंजर, घराट भी सूने
कुजगढ़ का उद्गम देवलीखेत की पहाड़ी व सौनी बिनसर है। बैना, कोटाड़, स्यूं, गैरड़, ऊंड़ी, कोठिया, टाना, कोरड़, तिपौला, टूनाकोट, चापड़ आदि गांवों की उर्वर धरा को सींचती हुई ये नदी खैरना (नैनीताल) में कोसी में मिलती है। घराट भी इसी के बूते चलते थे। नदी सूखने से बचेखुचे खेत बंजर हो गए हैं।
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जागरण संवाददाता, रानीखेत: हिमालयी राज्य में गैर हिमानी नदियों पर संकट! उच्च इलाकों में बेहतर बर्फबारी व शरदकालीन वर्षा के लंबे स्पैल के बावजूद थमता भूमिगत जल प्रवाह भविष्य की कुछ ऐसी ही भयावह तस्वीर पेश कर रहा। कुमाऊं की छह प्रमुख नदियों के पहले ही संकटग्रस्त घोषित होने के बाद अब 'कुजगढ़' नदी रोखड़ में तब्दील हो गई है। यानी मौसमी नदियों की फेहरिस्त में एक और नाम जुड़ जाएगा। मौजूदा हालातों से चिंतित वैज्ञानिकों ने महानदी गंगा की तर्ज पर 'उत्तराखंड रिवर रिजनरेशन ऑथोरिटी' की सलाह दोहराई है।
उत्तराखंड का तकरीबन 68 फीसद भूभाग यहां की गैर हिमानी नदियां व हजारों धारे एवं गाढ़-गधेरे संचारित करते हैं। मगर ये सभी खुद अस्तित्व को जूझ रहीं। कुमाऊं की 'लाइफ लाइन' कोसी मोहान क्षेत्र में विलुप्ति के कगार पर है। पनार व सरयू काकड़ीघाट, पश्चिमी रामगंगा मरचूला तो गगास भिक्यिासैंण से आगे दम तोड़ रही। ये सभी मौसमी नदियों की सूची में दर्ज हो चुकी हैं। चिंताजनक पहलू यह कि संरक्षण की ठोस नीति न बनने से एक और नदी 'कुजगढ़' रोखड़ में बदल गई है। कोसी की यह सहायक नदी बीते वर्ष जून में छलाछल पर इस साल विलुप्त हो चली है।
खेती बंजर, घराट भी सूने
कुजगढ़ का उद्गम देवलीखेत की पहाड़ी व सौनी बिनसर है। बैना, कोटाड़, स्यूं, गैरड़, ऊंड़ी, कोठिया, टाना, कोरड़, तिपौला, टूनाकोट, चापड़ आदि गांवों की उर्वर धरा को सींचती हुई ये नदी खैरना (नैनीताल) में कोसी में मिलती है। घराट भी इसी के बूते चलते थे। नदी सूखने से बचेखुचे खेत बंजर हो गए हैं।
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